थरा/अम्बाह। भीमसेन सिंह तोमर। ।मैं संदीप राजौरिया, इस दैनिक समाचार पत्र के माध्यम से चंबल अंचल के सभी युवा को यह संदेश देना चाहूंगा कि युवा सदैव से शक्तियों का पुंज रहा है। आपके भीतर विभिन्न प्रकार की क्षमताएं हैं, उन्हें पहचानो और सही दिशा में उनका प्रयोग करो। चंबल हमेशा से वीरों की भूमि के रूप में जाना जाता था परंतु कालांतर में ये डकैतों के लिए प्रसिद्ध हुआ, मैं युवाओं से अनुरोध करता हूं की अपनी ऊर्जा का सदुपयोग करें, इसे उत्पादक वस्तुओं में प्रयोग करें, पढ़ाई में प्रयोग करें ताकि आपका और हमारा क्षेत्र, बंदूकों और गोलियों के लिए नहीं, बल्कि यहाँ से निकलने वाले प्रेरणादाई युवाओं के लिए जाना जाए । इतिहास गवाह रहा है कि चंबल के युवाओं ने सदैव राष्ट्र समर्पण का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। जब भी देश सेवा में योगदान की बात रही हो यहाँ के ऊर्जावान युवा राष्ट्र सेवा में सदैव तत्पर रहे है और मैं आशा करता हूं की ये भविष्य में भी एक मिसाल बनेगा। शक्ति पुंज युवा सामाजिक उत्थान में भी भागीदारी सुनिश्चित करें, संवेदनशीलता व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार लाती है और संवेदनशील युवा राष्ट्र हित और राष्ट्र विकास में अधिक सहयोगी रहता है।
कल कल करती जीवन दायनी चंबल ने हमारे क्षेत्र को आशीर्वाद स्वरुप उपजाऊ मृदा को दिया है जो की कंचन रूपी फसलों प्रदान करती है। युवा अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस कंचन को हीरे में परिवर्तित कर सकते हैं, अर्थात् सरसों पर आधारित खाद्य प्रसंस्करण इकाई लगाई जा सकती है, हमारे यहाँ की प्रसिद्ध गजक को अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात कर इसे विश्व पटल पर पहचान दिलाई जा सकती है। हम अपने क्षेत्र के भूगोल से इतिहास रच सकते हैं, और यह हमें प्राकृतिक और ईश्वरीय देन है।
चंबल अंचल का इतिहास महाभारत काल से ही संपन्न और समृद्ध रहा है, युवा अपने गौरवपूर्ण इतिहास और संस्कृति को जानें, पहचाने और हमें गौरवान्वित करने वाली संस्कृति और संस्कारों को आगे आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास करें। युवा कड़ी मेहनत और परिश्रम के भय को त्यागकर आगे आएं और ना सिर्फ अपना और अपने परिवार का बल्कि सम्पूर्ण क्षेत्र की प्रशस्ति के लिए प्रयास करें ताकि चम्बल क्षेत्र की प्रशस्ति का परचम ना सिर्फ मध्य प्रदेश में बल्कि संपूर्ण भारत में लहराए । युवा अपनी ऊर्जा का सही दिशा में प्रयोग करते हुए अपने लिए रास्ता बनाएं और आने वाली पीढ़ी का भी मार्ग प्रशस्त करें ताकि विश्व पटल पर भारत की गरिमा में वृद्धि हो। सत्य ही कहा है — “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। अपनी जन्मभूमि को स्वर्ग बनाने का यथोचित प्रयास करें।
अपने शब्दों को विराम देते हुए सहसा ही मुझे स्वामी विवेकानंद का युवाओं को आवाह्न याद आ जाता है— ” उठो, जाग्रत हो, और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो।”