‘दिमनी :संदिग्ध आरोपी की मौत’ मुरैना पुलिस की कहानी और छेदों से भरी छलनी?
श्रीगोपाल गुप्ता
अवैध हथियारों के तस्कर और बिक्रेता के संदेह में मुरैना जिले की दिमनी थाने की पुलिस की अपने थानान्तगर्त चित्ते के पुरा से आटो चालक 42 वर्षिय रघुराज सिंह तोमर को शनिवार दो फरवरी को गिरफ्तार कर थाने में पूछताछ के नाम पर बंद कर देती है। दूसरा दिन पूरा दिन रविवार भी बीत जाता है, मगर पुलिस इस कथित अवैध हथियारों के कारोबारी का मीडिया में खुलाशा और अपने रोजनामचे में कहीं दर्ज नहीं करती है। इसी बीच सोमवार होते-होते सुबह ही रघुराज सिंह तोमर का शव महिला थाने के शौचालय में फांसी पर लटका मिलता है। मगर पुलिस इस बात का खुलासा अभी नहीं करती है, जबकि आनन-फानन में दिमनी थाना पुलिस के कांरिदे मृत रघुराज सिंह के घर पहुंच कर उसकी पत्नी की गैर मौजुदगी में उसकी नाबालिक पुत्रियों 16 वर्षिय राखी और 14 वर्षिय वंदना से यह कहते हुये कोरे कागज पर दस्तखत करवा लेती है कि उनके पिता को हम छोड़ रहे हैं। जबकि वो पहले ही मर चुका है। दिमनी थाने की यह घटिया और छेदों से लबालब कहानी किसी मुंबईय्या फिल्म की घटिया कहानी से कितनी मिलती जुलती है ,इसमें किसी को भी शक की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। दरअसल झूठ और पुलिसिया कहर से औत-प्रोत इस कहानी का मुख्य किरदार और आटो चलाकर अपनी दो बेटी और दो बेटों सहित अपनी पत्नि और अपना पेट भरने वाला रघुराज सिंह तोमर तो पुलिस के टारगेट पर था ही नहीं। उसे तो सजा इस बात की मिली कि जिस सोनू तोमर नामक वांरटी को पकड़ने पुलिस गांव में पहुंची, वो सोनू तोमर उसके हत्थे नहीं चड़ा तो उसके दोस्त रघुराज सिंह तोमर को पकड़ लाई। क्योंकि पुलिस का कोई रिकार्ड रघुराज को अपराधी नहीं ठहराता। बावजूद इसके रघुराज सिंह को लगभग 32 घंटे बिना कोर्ट में पेश किये अवैध निरोध में रखना उसके क्रूर होने का प्रमाण है।
पुलिस का दावा है कि रघुराज ने महिला थाने के शौचालय में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।फांसी के लिए पहले उसने अपने कच्छे के नाड़े का इस्तैमाल करने का प्रयास किया, मगर उसके दो टूकड़े पाये गये तो ऐसा लगता है कि उसने जो अपनी पत्नी की शाल जो तोमर ने ओढ़ रखी थी, उसको फाड़ कर रस्सी बनाकर फांसी लगा ली।ये पुलिसिया कहानी और पटकथा दोनों ही निहायत झूठी और घिसी-पिटी हो चुकी हैं। क्योंकि जो हजरत आज तक कभी भी,कहीं भी,किसी भी पुलिस हिरासत में पुलिस थाने के हवालात में बंद हुये होंगे? वे अच्छी तरह से जानते हैं कि पुलिस हवालात में बंद करने से पहले उसका पूरा सामान यहां तक बैल्ट भी उतरवा लेते हैं ,ऐसे में फांसी लगाने के लिए शाॅल जाने दी संदेह में डालता है। यदि पुलिस की कहानी को सच मान भी लिया जाये तो यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि जब रघुराज के लगभग 10 परिजन जब उसकी मौत की खबर पाकर ट्राॅली पर थाने पंहुंचे तो उनको दिखाने से पहले ही शव को पोस्टमार्टम हाऊस मुरैना क्यों रवाना कर दिया? और जब उन परिजनों ने मौत पर सवाल खड़े किये तो उन्हे ही तीन घंटे तक अवैध निरोध में हवालात में बंद कर दिया। पुलिस की ये कैसी संवेदनशीलता है। इसके बाद ही थाना परिसर ग्रामीण और पुलिस जवानों के बीच युद्ध का मैदान बन गया। दोनों के बीच दो घंटे तक पत्थर युद्ध होता रहा। बाद में पुलिस को हालातों को काबू में करने के लिए आंसू गोले और 25 राऊण्ड गोली चलानी पड़ी। पुलिस का पव्लिक के साथ ये कैसा अमानवीय रिस्ता है? सवाल और भी हैं, जिनके जबाव पुलिस को देने होंगे। आज दिमनी पुलिस थाना आधुनिक रुप से अपडेट है, ऐसे में कोई आरोपी फांसी लगा लेता है, वह भी अपनी बराबरी पर लगी एक कमजोर सी कील पर लटक कर और मर जाता है जबकि थाने की बेहतरी और हवालात में बंद आरोपियों की सुरक्षा में तैनात पुलिस का अमला देखता रहता है? ऐसे में मृतक की दोनों बच्चियों के इस आरोप को आला पुलिस अधिकारियों को कि उसके पिता को पुलिस ने पीट-पीट कर मार डाला ,इस विसय को गंभीरता से लेकर इसकी निसपच्क्ष जांच करानी चाहिए और देखना चाहिये कि दोषी किसी कीमत पर बचने नहीं चाहिये,क्योंकि मुरैना पुलिस की कहानी और छेदों से भरी छलनी में कोई अन्तर प्रथम दृष्टया नजर नहीं आ रहा है?