लेखक भीष्म भदौरिया
जाने माने व्यंग लेखक भीष्म भदौरिया
भारत देश में लोकतंत्र की स्थापना हुए 72 साल हो गए और लोकतंत्र की स्थापना के पीछे हमारे उस समय के बुद्धिजीवियों का सोचना था कि इसके माध्यम से भारत के आम नागरिकों न्याय और सुविधा उपलब्ध कराई जा सकेगी लेकिन जब इन विगत वर्षों का अध्ययन किया जाए और समय-समय पर जो घटनाएं हुई वह यह संकेत देती हैं भारत देश में लोकतंत्र खाकी और खादी के घर पर बांध दिया है इसके बहुत से कारण भी है कि जब हमारे प्रतिनिधि जीतकर विधानसभा या लोकसभा में पहुंचते हैं तो वह आम जनता का विकास या आम जनता की समस्याओं को भूल कर स्वयं के विकास में लग जाते हैं अतः यह विकास सकारात्मक रूप से नहीं होता है तो स्वाभाविक उन व्यक्तियों को भी सम्मिलित कर लिया जाता है जो अपराधी सोचके होते हैं इससे अपराधियों को बढ़ावा मिलता है और किसी कारण खाकी और खादी का गठजोड़ होता है उसी का एक उदाहरण वर्तमान में विकास दुबे अंसारी शहाबुद्दीन पप्पू यादव यह सभी तो शतरंज के छोटेसे, मोरे हैं इससे आगे चलकर हम बात करते हैं वर्तमान में कुछ समय पहले मध्य प्रदेश की सरकार गिराई जिसमें खरीद-फरोख्त के तरीके से लोकतंत्र की हत्या महाराष्ट्र में सरकार गिराने का प्रयास अभी हाल ही एक-दो दिन में राजस्थान की सरकार गिराने का प्रयास तो क्या यह लोकतंत्र की हत्या नहीं है क्या स्पष्ट नहीं दिखाई दे रहा कि एक आम जनता ने अपना बहुमूल्य मत देकर अपने प्रतिनिधियों को लोकसभा और राज्यसभा में पहुंचाया था क्या आम जनता का यह सोचना था कि यह पार्टियां छोड़ छोड़ के बीच में भाग जाएंगे नहीं दोस्त यह सर्वे के विकास के लिए ना कि देश और लोकतंत्र के सम्मान में इसलिए स्पष्ट दिखाई दे रहा है संपूर्ण भारत में एक राजा हुआ करता था देश में साडे पांच सौ और सारे राज्यों को जोड़कर विधायक 10,000 कुल मिलाकर इन सभी ने लोकतंत्र को माफिया और गुंडाराज के हाथों में बेच रख क्योंकि जब एक मंत्री क्षेत्र में दौरा करने आता है उसके स्वागत में लाखों रुपए के पोस्टर भव्य भव्य कार्यक्रम किए जाते हैं इनका खर्चा क्या आम आदमी उठा सकता है दो नंबर कमाई से उठाया जाता है इसलिए लोकतंत्र की प्रक्रिया धीरे-धीरे समाप्त और राजतंत्र की स्थापना पुनः होने लगी है एक आम नागरिक किसी भी विभाग में अगर अपनी समस्या को लेकर जाए तो उसकी सुनवाई नहीं होती जबकि एक गैंगस्टर सरेआम थाने में एक राज्य स्तर के मंत्री की हत्या करता है और वहां से सरलता से जाता है तो क्या यह उस समय हमारी न्याय प्रणाली के मुंह पर तमाचा नहीं था भारतवर्ष में कहने को लोकतंत्र लेकिन वास्तविकता देखी जाए तो हमारा लोकतंत्र विधानसभा और लोकसभा के चरणो में नतमस्तक और इन्हीं कदमों पर चलते हुए हमारा देश स्वच्छ और स्वस्थ बनेगा लेकिन भारतवर्ष में जब जब पापों के ता बढ़ी है तब तब हमारे यहां युग पुरुषों ने जन्म लिया है और उस पाप का नरसंहार किया है उसी प्रकार हमें 21वीं सदी में यशस्वी प्रधानमंत्री जी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मिले जो पुनः लोकतंत्र की स्थापना करके देंगे ऐसा आम जनता का मानना है लेखक भीष्म भदौरिया